आरक्षण संबंधी संविधान के प्रावधानों की शव यात्रा निकालने का दलित व अन्य संगठनों ने किया विरोध

शिमला

15 नवंबर को शिमला से भारतीय संविधान के तहत सामाजिक व आर्थिक रूप से वंचित वर्गों के लिए तय आरक्षण व उनकी सुरक्षा के लिए गठित कानूनों के विरुद्ध शव यात्रा निकालने व इन संवैधानिक प्रावधानों को जलाने के प्रस्तावित कार्यक्रम का विभिन्न संगठनों ने भारी विरोध जताया है।

भीम आर्मी एकता मिशन इसको को लेकर अपनी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। मिशन के प्रदेश अध्यक्ष रवि कुमार दलित ने कहा कि प्रदेश में कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा आपसी सौहार्द व भाईचारे को समाप्त करने का प्रयास किया जा रहा हैं । सरकार व पुलिस प्रशासन को प्रदेश की शान्ति भंग करने को लेकर इन लोगों पर कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि किसी राजनीतिक महत्वाकांक्षा व दृष्टिकोण के चलते किसी गहरी साजिश के तहत प्रदेश का माहौल खराब करने की योजना बनाई जा रही है जिसको कामयाब नहीं होने दिया जाएगा।
रवि कुमार दलित ने काहा कि यदि प्रदेश सरकार इनके बहकावे में आकर इन लोगों की सुनती है तो दलित समाज भी चुप नहीं बैठने वाला और प्रदेश सरकार को दलित समाज की भी बात सुननी पड़ेगी।
उन्होंने कहा कि स्वर्ण आयोग की मांग की भी जा रही हैं जो कि असंवैधानिक है पहले ही प्रदेश सरकार द्वारा विभिन्न कल्याण बोर्ड बनाए गए हैं और प्रदेश सरकार द्वारा 10% आरक्षण भी दिया गया है।
उन्होंने कहा कि यदि प्रदेश सरकार व प्रशासन हालात सुधारने में नाकाम साबित हुआ तो जल्द ही दलित समाज व सभी दलित संगठन सड़कों पर उतरेगे और अपने हितों की रक्षा लिए जोरदार प्रदर्शन करेंगे ।

सीपीएम ने इस कदम को संविधान की मूल धारणा के विरुद्ध बताया, की कारवाई की मांग

उधर भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(मार्क्सवादी) की राज्य कमेटी का मानना है कि कुछ जातीय संगठनों के द्वारा 15 नवंबर को शिमला से भारतीय संविधान के तहत सामाजिक व आर्थिक रूप से वंचित वर्गों के लिए तय आरक्षण व उनकी सुरक्षा के लिए गठित कानूनों के विरुद्ध शव यात्रा निकालने व इन संवैधानिक प्रावधानों को जलाने की जो बात की जा रही है, यह संविधान की मूल धारणा के विरुद्ध है और इससे प्रदेश में जातीय असहिष्णुता का खतरा बढ़ेगा, जिससे प्रदेश में एक नए प्रकार के जातीय ध्रुवीकरण को बढ़ावा मिलेगा और प्रदेश में सद्भावना बिगड़ेगी। पार्टी ने मांग की है कि सरकार इन संगठनों के द्वारा की जा रही इस प्रकार की समाज में उन्माद फैलाने वाली गतिविधियों पर तुरंत रोक लगाए तथा प्रदेश मे कुछ स्वार्थी तत्वों के द्वारा इस प्रकार की जाति पर आधारित किए जा रहे ध्रुवीकरण करने के प्रयासों पर रोक लगाई जाए ताकि प्रदेश में सौहार्दपूर्ण माहौल बनाए रखा जाए तथा किसी भी प्रकार का उन्माद पैदा न हो।

माकपा के राज्य सचिव ओंकार शाद ने कहा है कि देश के संविधान ने सभी को अपनी बात व अपनी मांग को रखने के लिए प्रदर्शन का अधिकार दिया है। परन्तु संविधान में किसी को भी इस संविधान की अवहेलना का अधिकार नहीं दिया गया है। डॉ भीम राव व अन्य संविधान निर्माताओं ने इसके निर्माण के समय जहाँ लोकतंत्र को मजबूत बनाए रखने के लिए अपनी बात रखने का अधिकार दिया है वहीं समाज मे जातिगत विषमताओं को देखते हुए समाज में समानता लाने के लिए आरक्षण का प्रावधान भी किया गया था और राज्य को इसे उचित रूप में लागू कर इन जातिगत भेदभाव व विषमताओं को समाप्त करने का दायित्व दिया गया था। परन्तु विडम्बना ये है कि आज संविधान के लागू हुए 70 वर्ष से अधिक समय में भी यह सामाजिक व जातिगत आधार पर भेदभाव समाप्त नहीं हो पाया है। आज भी देश में जातिगत आधार पर भेदभाव व अत्याचार के मामले सामने आते रहते हैं और इनमें निरन्तर वृद्धि हो रही है। सरकार को इन जातिगत आधार पर बढ़ते भेदभाव व अत्याचार के मामलों पर रोक लगाने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए तथा जो भी संगठन व व्यक्ति देश व प्रदेश में जातिगत आधार पर उन्माद पैदा कर माहौल खराब करने का कार्य कर रहे हैं उनके विरुद्ध कानूनी रूप से कड़ी कार्यवाही की जानी चाहिए। संविधान में समानता के अधिकार को लागू करने के लिए सरकार को प्राथमिकता से कार्य करना चाहिए और समाज मे जातीय भेदभाव को समाप्त करने के लिए सामाजिक व आर्थिक रूप से उत्पीड़ित सभी को उनके उथान के लिए जो भी संवैधानिक व्यवस्थाएं है उनको लागू कर समाज में समानता लाने के दायित्व का निर्वहन करना होगा तभी समाज में इस जातिगत आधार पर भेदभाव व उत्पीड़न पर रोक लगाई जा सकती है।

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